
गोबर दे बछरू, गोबर दे, चारों खूंट ल लीपन दे …इस खेल गीत का संबंध किससे है ?
gobar de bacharu gobar de: छत्तीसगढ़ की ग्रामीण संस्कृति में खेल केवल मनोरंजन का साधन नहीं बल्कि जीवन, परंपरा और सामाजिक सोच का दर्पण हैं। इन्हीं लोकखेलों में फुगड़ी का विशेष स्थान है। फुगड़ी एकल खेल है जिसे मुख्य रूप से किशोरियाँ खेलती हैं। इसके लिए बड़े मैदान, खिलौने या किसी सामग्री की आवश्यकता नहीं होती। घर का आंगन या बरामदा ही इसका खेल मैदान बन जाता है। इसमें एक खेल गीत है “गोबर दे बछरू, गोबर दे, चारों खूंट ल लीपन दे…”खेल गीत का सम्बन्ध फुगड़ी से है।
फुगड़ी और नारी जीवन का चित्रण
फुगड़ी को केवल खेल मान लेना इसकी गहराई को नज़रअंदाज़ करना होगा। यह खेल स्त्रियों की संवेदनाओं और पीड़ा का प्रतीक भी है। इसीलिए इसे नारी श्रृंखला का सबसे प्रमुख खेल कहा गया है। किशोर अवस्था की लड़कियाँ इसमें शामिल होती हैं, जबकि विवाहित और वयस्क स्त्रियों को इसमें भाग लेने की अनुमति नहीं रहती।
फुगड़ी में गीतों की परंपरा
फुगड़ी खेलते समय गीत गाए जाते हैं, जो न केवल खेल का हिस्सा होते हैं बल्कि ग्रामीण जीवन, परंपरा और नारी मन की भावनाओं को भी उजागर करते हैं। इनमें परिवार, रिश्तों और सामाजिक व्यवस्था की झलक स्पष्ट दिखाई देती है।
छत्तीसगढ़ी गीत:
गोबर दे बछरू गोबर दे
चारो खूंट ल लीपन दे
चारो डेरानी ल बईठन दे
अपन खाथे गूदा गूदा
हमला देथे बीजा
ये बीजा ल का करबो
रीह जबो तीजा
तीजा के बिहान दिन
घरी घरी लुगरा
चींव चींव करे मंजूर के पीला
हेर दे भउजी कपाट के खीला
एक गोड़ म लाल भाजी
एक गोड़ म लाल कपूर
कतेक ल मानंव
देवर सुसर।
हिन्दी अनुवाद
गाय (बच्चा) गोबर दो
चारों तरफ की लिपाई करने दो
चारों देवरानियों को बैठने दो
वे खा जाते हैं गूदे
हमें देते हैं बीज
बीज को क्या करें
रह जाते हैं तीज
तीज के दूसरे दिन
नयी-नयी साड़ी
व्याकुल है मयूर के बच्चे
खोल दे भाभी दरवाजे
एक पैर में लाल भाजी
एक पैर में कपूर
कितनों को मानूं देवर-ससुर।
यह गीत आंगन की लिपाई से शुरू होता है और धीरे-धीरे रिश्तों, उत्सव और जीवन की बारीकियों को सामने लाता है।
तीज और फुगड़ी का संबंध
गीत में तीज त्योहार का विशेष उल्लेख मिलता है। तीज के अवसर पर स्त्रियाँ नए वस्त्र पहनती हैं, गीत गाती हैं और परंपराओं का पालन करती हैं। फुगड़ी का खेल और इससे जुड़े गीत इस उत्सव की सांस्कृतिक धरोहर का हिस्सा हैं।
फुगड़ी का सांस्कृतिक महत्व
- यह खेल ग्रामीण समाज में नारी अभिव्यक्ति का माध्यम है।
- इसमें रिश्तों की जटिलता और सामाजिक व्यवस्था की झलक दिखती है।
- फुगड़ी से जुड़े गीत लोकसाहित्य को समृद्ध करते हैं।
- त्योहारों और पारिवारिक आयोजनों में यह खेल परंपरा के रूप में निभाया जाता है।
निष्कर्ष
“गोबर दे बछरू” गीत केवल फुगड़ी खेल का हिस्सा नहीं है, बल्कि छत्तीसगढ़ी लोकजीवन का सजीव चित्र है। इसमें ग्रामीण जीवन की सादगी, नारी की पीड़ा और त्योहारों की उमंग एक साथ मिलती है। यह परंपरा न केवल मनोरंजन देती है बल्कि समाज की सोच और संस्कृति को भी जीवित रखती है।
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