Ritesh from Chhattisgarh making slippers from cow dung

छत्तीसगढ़ के रितेश गोबर से बना रहे चप्पल, देशभर से मिल रहे ऑर्डर

जानवर के चमडो जूते चप्पल बनना आपने सुना होगा लेकिन कभी आपने सोचा है गाय के गोबर से बना चप्पल जी हाँ,  छत्तीसगढ़ के रितेश अग्रवाल कुछ ऐसा ही शानदार काम कर रहे है।  15 साल पहले, खेती और पशुपालन के बारे में कुछ नहीं जानते थे। लेकिन प्रकृति से  उनका जुड़ाव हमेशा से था, आस-पास फैला प्रदूषण और पर्यावरण के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को समझते हुए ही, उन्होंने नौकरी छोड़कर, गौसेवा से जुड़ने का फैसला किया। पहले वह गौशाला से गोबर खरीदकर इससे ईको फ्रेंडली चीजें बनाया करते थे। सबसे पहले उन्होंने राजस्थान के प्रोफेसर शिवदर्शन मलिक से गोबर की ईटें बनाना सीखा। फिर उन्होंने गोबर की ईटें, लकड़ी, दिये, मूर्तियां आदि बनाने का काम शुरू कर दिया। 

फ़िलहाल रितेश, राज्य सरकार की ओर से बने गोठान को संभालने का काम करते हैं। गोठान, सड़क पर बेसहारा घूमती गायों के लिए बनी एक गौशाला है। नगर निगम के लोग, रायपुर के आस-पास से जख्मी और खाने के लिए भटकती गायों को इस गौशाला में लाते हैं। साल 2018-19 में छत्तीसगढ़ सरकार ने गोठान मॉडल शुरू किया, तब से ही रितेश भी इस मॉडल के साथ जुड़े। 

इस गौशाला को स्वाबलंबी बनाने के लिए ही, उन्होंने गाय के गोबर से अलग-अलग चीज़े बनाना शुरू किया। वह अभी गोबर का इस्तेमाल करके तक़रीबन 30 तरह के प्रोडक्ट्स बना रहे हैं। 

फिलहाल, इस गौशाला में 385 गायें हैं। इनके चारे का भी रितेश विशेष ध्यान रख रहे हैं। वह शहर की सब्जी मंडी से बेकार सब्जियां भी लाते हैं, जो गाय के लिए बढ़िया चारा बनती हैं। 

कैसे आया गोबर की चप्पल बनाने का ख्याल ?

दरअसल, रितेश गोबर को काफी फायदेमंद मानते हैं। इसलिए वह अक्सर इसके नए-नए प्रयोग के बारे में सोचते रहते हैं। उन्होंने बताया, “मेरी दादी हमेशा कहा करती थी कि वे गोबर की लिपाई किए हुए घर में रहते थे। अब टाइल वाले घर में मैं गोबर तो लीप नहीं सकता था, इसलिए मुझे गोबर से चप्पल बनाने का ख्याल आया।”

चप्पल (Cowdung slippers) बनाने के पीछे का एक और कारण टूटी हुई चप्पलों से फैल रहे प्रदूषण को कम करना भी था। गोबर से बनी उनकी ये चप्पलें पूरी तरह से ईको-फ्रेंडली हैं।  

उन्होंने पहली चप्पल अपनी दादी के लिए ही बनाई थी। वह चप्पल थोड़ी सख्त थी, लेकिन उनकी दादी ने उन्हें बताया कि इससे उन्हें स्वास्थ्य लाभ भी हो रहे हैं, जिससे रितेश को ऐसी और चप्पलें बनाने के लिए प्रेरणा मिली। 

उनकी दादी को देखकर कई लोगों ने उन्हें ऐसी और चप्पलें बनाने को कहा। उन्होंने इस चप्पल (Cowdung products) को बनाने में गोबर, ग्वारसम  और चूने का इस्तेमाल किया है। एक किलो गोबर से 10 चप्पलें बनाई जाती हैं। अगर यह चप्पल 3-4 घंटे बारिश में भीग जाए, तो भी खराब नहीं होती, धूप में इसे सुखाकर दोबारा इस्तेमाल किया जा सकता है।  

इन चप्पलों (Cowdung products) का दाम करीब 400 रुपये है, जिसे बनाने में 10 दिन लगते हैं। उन्होंने बताया, “गाय के गोबर में रेडिएशन को कम करने की अच्छी क्षमता होती है। ऐसी चप्पल के इस्तेमाल से स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है।”

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