शकुंतला दुष्यंत के पुत्र भरत बाल्यकाल में शेरों के साथ खेला करते थे वैसे ही बस्तर का यह लड़का शेरों के साथ खेलता था। इस लड़के का नाम था चेंदरू (chendru mandavi)। बस्तर मोगली नाम से चर्चित चेंदरू पुरी दुनिया में 60 के दशक में बेहद ही मशहुर था।
सन् 1960 का घने जंगलो से घिरा घनघोर अबूझमाड़ का बस्तर . पुरे बस्तर में फैला मुरिया जनजाति के लोगो का साम्राज्य , इन घने जंगलो में चेंदरू नाम का 10 वर्षीय बच्चा खतरनाक शेरों के साथ सहज तरीके से खेल रहा है,अठखेलियाँ कर रहा है।
बस्तर में मोगली के नाम से चर्चित द टायगर बाय चेंदरू Tiger Boy Chendru Mandavi पुरी दुनिया के लिये किसी अजूबे से कम नही था, चेंदरू मण्डावी वही शख्स थे, जो बचपन में हमेशा बाघ के साथ ही खेला करते थे, और उसी के साथ ही अपना अधिकतर समय बिताते थे।
इनके जीवन का सबसे अच्छा पहलू उसकी टाइगर से दोस्ती, वह हमेशा दोनों एक साथ ही रहते थे, साथ में खाना, साथ में खेलना, साथ में सोना सब साथ-साथ ही होता था।
चेंदरू की बाघ से दोस्ती
चेंदरू मंडावी नारायणपुर के गढ़बेंगाल का रहने वाले यह एक आदिवासी ग्रामीण क्षेत्र से थे, उनके पिता और दादा एक शिकारी थे, एक दिन जंगल से एक तोहफा लाए बांस की टोकरी में छुपे तोहफे को देखने चेंदरू बड़ा ही उत्साहित था।
तोहफा एक दोस्ती का था जिसने चेंदरू का जीवन बदल दिया चेंदरू के सामने जब टोकरी खुली वह अपने सोच से परे कुछ पाया, टोकरी में था एक बाघ का बच्चा जिसे देख चेंदरू ने उसे अपने गले से लगा लिया और इस मुलाकात से बाघ और चेंदरू की अच्छी दोस्ती की शुरूआत हो गई। चेंदरू ने उस बाघ का नाम टेम्बू रखा चेंदरू वह हमेशा टेम्बू के साथ गांव के जंगल में घूमते व नदी में मछलियां पकड़ते और जंगल मे कभी तेंदुए मिल जाते तो वह भी इनके साथ खेलने लगते जब चेंदरू और टेम्बू रात को घर आते तो चेंदरू की माँ उनके लिये चावल और मछली बना कर रखती।
रातों-रात हालीवुड स्टार हो गए
चेंदरू और बाघ की दोस्ती का यह किस्सा गांव-गांव में फैलने लगा और एक दिन विदेश में स्वीडन तक पहुच गया, स्वीडन के सुप्रसिद्ध फिल्मकार डायरेक्टर अरने सक्सडोर्फ को जब यह किस्सा पता चला तो वह सीधा बस्तर आ पहुचे।
वह आने के बाद एक ऐसा दृश्य देखा जहाँ एक इंसान और एक बाघ एक दूसरे के दोस्त हो और उन दोनों में कोई दुशमनी नही ऐसा दृश्य डायरेक्टर अरने सक्सडोर्फ के सामने था। जिसे देख उस दृश्य को उन्होंने पूरी दुनिया को दिखाने का फैसला कर लिया।
The Jungle Saga: द जंगल सागा फिल्म में किया काम
बाघों से उनकी इस दोस्ती से प्रभावित होकर 1957 में सुप्रसिद्ध मशहूर स्वीडन फिल्मकार अरने सक्सडोर्फ ने चेंदरू और उसके पालतू शेर को लेकर एक फिल्म बनाई, जिसका नाम द फ्लूट एंड द एरो था जिसे भारत मे नाम दिया गया एन द जंगल सागा (The Jungle Saga) फ़िल्म अंतराष्ट्रीय स्तर पर खूब सफल रही, इस फिल्म ने पूरी दुनिया में धूम मचा दी।
इस फिल्म में उसके दोस्त बाघ के साथ उसकी दोस्ती के बारे में दिखाया गया था, इस फिल्म के हीरो का रोल चेंदरू ने ही किया और यहां रहकर 02 साल में पूरी शूटिंग की इस फिल्म ने उसे दुनिया भर में मशहूर कर दिया,
1957 में 75 मिनट की फिल्म एन द जंगल सागा जब पुरे यूरोपी देशों के सेल्युलाईड परदे पर चली तो लोग चेंदरू के दीवाने हो गए चेंदरू रातों-रात हालीवुड स्टार हो गया।
अरेन भी चाहते थे कि चेंदरू (Chendru Mandavi) वो जगह देखे जहाँ से वह आये है, तो उन्होंने चेंदरू को स्वीडन ले जाने का सोचा। और वो उसे स्वीडन ले गए। स्वीडन चेंदरूके लिये एक अलग ही दुनिया थी, अरेन ने उसे एक परिवार का माहौल दिया, उन्होंने उसे अपने घर पर ही रखा और अरेन की पत्नी अस्त्रिड सक्सडोर्फ ने चेंदरू की अपने बेटे की तरह देखरेख की।
चेंदरू को आर्ने सक्सडॉर्फ गोद लेना चाहते थे लेकिन उनकी पत्नी एस्ट्रीड बर्गमैन सक्सडॉर्फ से उनका तलाक हो जाने के कारण ऐसा हो नहीं पाया। एस्ट्रीड एक सफल फोटोग्राफर के साथ-साथ लेखिका भी थी। फ़िल्म शूटिंग के समय उन्होंने चेंदरू की कई तस्वीरें खीची और एक किताब भी प्रकाशित की चेंदरू – द बॉय एंड द टाइगर , स्वीडन में चेंदरू करीब एक साल तक रहा, उस दौरान उसने बहुत सी प्रेस कॉन्फ्रेंस, फ़िल्म स्क्रीनिंग की, और अपने चाहने वालो से मिला। दुनिया उतावली थी।
उसके बाद चेंदरू वापिस भारत आ गए, तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरूजी ने चेंदरू को मुंबई रुकने की सलाह दी। पर भीड़भाड की जिंदगी से दूर और पिता के बुलावे पर चेंदरू वापिस अपने घर बस्तर आ गया। चेंदरू को बुढ़ापे में भी उम्मीद थी कि एक दिन उन्हें तलाशते हुए आर्न सक्सडॉर्फ गढ़बेंगाल गांव ज़रूर आएंगे लेकिन 4 मई 2001 को आर्ने सक्सडॉर्फ की मौत के साथ ही चेंदरू की यह उम्मीद भी टूट गई। चेंदरू के पिता ने उसे वापस बुला लिया, अब चेंदरू बस्तर के अपने गांव वापस आ गया, पर वापस आने के कुछ दिनों बाद उसका बाघ टेम्बू चल बसा।
गुमनामी की ज़िंदगी जीते 2013 में हुई मौत
टेम्बू के जाने के बाद चेंदरू (Chendru Mandavi) उदास रहने लगा और वह धीरे धीरे पुरानी ज़िन्दगी में लौटा और फिर गुमनाम हो गया। गुमनामी की ज़िंदगी जीते सन 2013 में लम्बी बीमारी से जूझते हुए इस गुमनाम हीरो की मौत हो गयी । बस्तर की इस प्रतिभाशाली गौरवगाथा की याद में छत्तीसगढ़ सरकार ने नया रायपुर के जंगल सफारी में चेंदरू का स्मारक बना कर सच्ची श्रध्दान्जली दी है।
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