Guru ghasidas jayanti 2022: गरु घासीदास भारत के छत्तीसगढ़ राज्य की संत परंपरा में सर्वोपरि है। घासीदास के हृदय में बचपन से ही वैराग्य का भाव पनप गया था। वे बचपन समाज में प्रचलित , पशुबलि और अन्य कुरीतियों का विरोध करते रहे। उन्होंने समाज को एक नयी दिशा प्रदान करने में अतुलनीय योगदान दिया था। समय का साक्षात्कार गुरु घासीदास के जीवन का परम लक्ष्य था। गुरु घासीदास को सतनाम पंथ का संस्थापक भी माना जाता है।
गुरु घासीदास जी का जन्म
(guru ghasidas jayanti in hindi) गुरु घासीदास जी का जन्म 18 दिसंबर 1756 को ग्राम गिरौदपुरी , तहसील – बलोदा बाजार , जिला – रायपुर में हुआ था। उनके पिता का नाम महंगदाश जी और माता जी का नाम अमरेटिन एवं उनका विवाह सिरपुर के पास अंजोरा गांव निवासी देवदत्त की पुत्री सफूरा के साथ हुआ। बाद में उनके चार बेटे अमरदास, बालकदास, आगरदास, अड़गड़िया और बेटी सुभद्रा हुई।
गुरु घासीदास जी का जन्म ऐसे समय में हुआ था जब समाज में छुआछूत ,ऊंच – नीच , असत्य का बोल बाला था। बाबा ने ऐसे समय में समाज में एकता और भाईचारा और सद्भाव का सन्देश दिया।
सतनाम पंथ के अनुसार खेती के लिए गायों का प्रयोग नहीं करना चहिये। उनके संदेशो का समाज के पिछड़े समुदाय पर गहरा प्रभाव पड़ा। 1901 की जनगणना के अनुसार उस समय लगभग ४ लाख लोग सतनाम पंथ में शामिल हुए थे। और गुरु अनुयायी थे
गुरु घासीदास जी का समय पर अटूट विश्वास
गुरुघासीदास जी (Guru ghasidas jayanti) समय के प्रति अटूट आष्टा की वजह से ही इन्होने बचपन में कई चमत्कार दिखाए , जिसका लोगो पर काफी प्रभाव् पड़ा। गुरु घासीदास ने समाज के लोगो को सात्विक जीवन जीने की प्रेरणा दी। उन्होंने सिर्फ सत्य की आराधना की बल्कि ,समाज में नई सोच पैदा की और अपनी तपस्या से ज्ञान और शक्ति का उपयोग मानवता की सेवा के कार्य में किया।
सतनाम पंथ की स्थापना
मानवता की सेवा के कार्य इसी प्रभाव के चलते लाखो लोग बाबा के अनुयायी हो गए फिर इसी तरह छत्तीसगढ़ में सतनाम पंथ की स्थापना हुई। इस संप्रदाय के लोग उन्हें अवतारी पुरुष के रूप में मानते है। गुरु घासीदास के मुख्य रचनाओं में उनके सात वचन सतनाम पंथ के सप्त सिद्धांत के रूप में प्रतिष्ठित है। इसलिए सतनाम पंथ का संस्थापक भी गुरु घासीदास जी को ही मन जाता है।
गुरु घासीदास जी की शिक्षा
गुरु घासीदास जी को ज्ञान की प्राप्ति छत्तीसगढ़ जिला के सारंगढ़ तहसील में बिलासपुर रोड में स्थित एक पेड़ के नीचे तपस्या करते वक़्त प्राप्त हुआ माना जाता है। जहाँ आज गुरु घासीदास पुष्प वाटिका की स्थापना की गयी है।
गुरु घासीदास बाबा जी ने समाज में व्याप्त जातिगत विषमताओं को नाकारा। उन्होंने ब्राम्हणो के प्रभुत्व को ना कहा। और कई वर्णो में बाटने वाली जाती व्यवस्था का विरोध किया। उनका मानना था की समाज में प्रत्येक व्यक्ति सामाजिक रूप से सामान है।गुरु घासीदास जी ने मूर्तियों की पूजा वर्जित किया वे मानते थे ,उच्च वर्ण के लोगो और मूर्ति पूजा में गहरा सम्बन्ध है।
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गुरु घासीदास जी का पशुओ से प्रेम
गुरु घासीदास जी पशुओ से भी प्रेम करने की सिख देते थे। वे उन पर क्रूरता पूर्वक व्यव्हार करने के खिलाफ थे। सतनाम पंथ के अनुसार खेती के लिए गायों का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए।
गुरु घासीदास जी का सन्देश
गुरु घासीदास के संदेशो और उनकी जीवनी का प्रसार पंथी गीत व् नृत्यों के जरिये भी व्यापक रूप से हुआ। यह छत्तीसगढ़ की प्रख्यात लोक विद्या भी मानी जाती है
सप्त सिद्धांत
इनके सात वचन सतनाम पंथ के सप्त सिद्धांत के रूप में प्रतिष्ठित है
1 सतनाम पर विश्वास
2 मूर्ति पूजा का निषेध
3 वर्ण भेद से परे
4 हिंसा का विरोध
5 व्यसन से मुक्ति
6 परस्त्री गमन पर वर्जना
7 दोपहर में खेत न जोतना
इनके द्वारा दिए गए उपदेशो में समाज के असहाय लोगो में आत्मविश्वास व्यक्तित्व की और अन्याय से जूझने की शक्ति का संचार हुआ।
समाज सुधार
गुरु घासीदास जी ने समाज में व्याप्त कुप्रथाओ का बचपन से ही विरोध किया है। उन्होंने समाज में व्याप्त छुआछूत की भावना के विरुद्ध “मनखे मनखे” एक सामान का सन्देश दिया।
मुख्य कार्य
गुरु घासीदास जी ने विशेष रूप से छत्तीसगढ़ राज्य के बाद उनकी शिक्षाओं को उनके पुत्र बालकदास ने लोगो तक पहुंचाया ।
गुरु घासीदास जी की मृत्यु
1850 में गुरु घासीदास जी की मृत्यु हुई जातियों में भेदभाव और समाज में भाईचारे की कमी देख कर गुरु घासीदास बहुत दुखी हुए। (guru ghasidas jayanti in hindi)
गुरु घासीदास जी की जयंती
प्रतिवर्ष 18 दिसंबर को गुरुघासीदास (guru ghasidas jayanti in hindi) का जन्मदिन को पुरे छत्तीसगढ़ में गुरु घासीदास जी की जयंती के रूप में मनाया जाता है उनकी जयंती खासकर गुरु घासीदास जी के पुष्प वाटिका में 2-3 दिन उत्साह के साथ मनाया जाता है।
रायपुर
छत्तीसगढ़ से करीब 145 किलोमीटर की दुरी पर बाबा गुरु घासीदास के जन्म स्थान गिरौदपुरी में सरकार ने विशाल स्तम्भ जैतखाम का निर्माण किया है। इसकी उचाई 253 फ़ीट है जो की दिल्ली के कुतुबमीनार से भी ऊँचा है।
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