छत्तीसगढ़ में भी भारत की तरह बहुत से जगह अंग्रेजो के विरुद्ध आवाज बुलंद हुये थे जिसमे बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों ने भाग लिया था जिसमे से बहुत से स्वतंत्रता सेनानियों ने अपनी अमूल्य योगदान देश की आजादी में दिए है जिनको भुला पाना हमारे लिए नामुमकिन है, इनमे से एक थे ठाकुर हनुमान सिंह (Hanuman singh from chhattisgarh) इनके सेवाभाव और समर्पण को हम सब का नमन इन्ही लोगो के कारण ही हम सब आज स्वतंत्र जीवन व्यतीत कर रहे है इन स्वतंत्रता सेनानियों की हम हमेश आभारी रहेंगे।
छत्तीसगढ का “मंगल पाण्डे”
हनुमान सिंह (1822) भारत के एक स्वतंत्रता सेनानी थे जिनको (chhattisgarh’s mangal pandey) ‘छत्तीसगढ का मंगल पाण्डे’ कहा जाता है। 18 जनवरी 1858 को उन्होने सार्जेंट मेजर सिडवेल की हत्या कर दी थी जो रायपुर के तृतीय रेजीमेंट का फौजी अफसर था।
रायपुर में उस समय फौजी छावनी थी जिसे ‘तृतीय रेगुलर रेजीमेंट’ का नाम दिया गया था। ठाकुर हनुमान सिंह इसी फौज में मैग्जीन लश्कर के पद पर नियुक्त थे। सन् 1857 में उनकी आयु 35 वर्ष की थी। विदेशी हुकूमत के प्रति घृणा और गुस्सा था। साथ ही अंग्रेजों से नारायण सिंह की मौत का बदला लेना चाहते थे। उन्होंने अपने कुछ साथियों के साथ 18 जनवरी, 1858 की शाम 7:30 बजे सशस्त्र हमला बोल दिया। देशी पैदल सेना की थर्ड रेजीमेण्ट के सार्जेण्ट मेजर सिडवेल उस समय अपने कक्ष में अकेले बैठे आराम कर रहे थे। हनुमान सिंह कमरे में निर्भीकतापूर्वक घुस गए तथा तलवार से सिडवेल पर घातक प्रहार किये और उनकी हत्या कर दी।
हनुमान सिंह के साथ तोपखाने के सिपाही और कुछ अन्य सिपाही भी आये। उन्हीं को लेकर वह आयुधशाला की ओर बढ़े और उसकी रक्षा में नियुक्त हवलदार से चाबी छीन ली। बन्दूको में कारतूस भरे। दुर्भाग्यवश फौज के सभी सिपाही उसके आवाहन पर आगे नहीं आये। इसी बीच सिडवेल की हत्या का समाचार पूरी छावनी में फैल चुका था।
इसके बाद वह छावनी पहुंचे। उन्होंने अन्य सिपाहियों को भी इस विद्रोह में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित किया। सभी सिपाहियों ने उनका साथ नहीं दिया। सिडबेल की हत्या का समाचार फैल चुका था और अंग्रेज अधिकारी सतर्क हो गए। लेफ्टिनेन्ट रैवट और लेफ्टिनेन्ट सी.एच.एच. लूसी स्थिति पर काबू पाने के लिये प्रयत्न करने लगे। हनुमान सिंह और उसके साथियों को चारों ओर से घेर लिया गया।
छः घंटों तक अंग्रेजों से भिड़े रहे
हनुमान सिंह और उनके साथी 6-7 घंटे तक अंग्रेजों का डटकर मुकाबला करते रहे। मौका देखकर हनुमान सिंह भाग निकले लेकिन उनके 17 साथी अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए। इन पर मुकदमा चलाया गया और मृत्युदण्ड दिया गया 22 जनवरी, 1858 को सभी सिपाहियों की उपस्थिति में इन्हें फाँसी पर लटका दिया गया। इन 17 शहीदों में सभी जाति और धर्म के लोग थे| जिनके नाम हैं: शिवनारायण, पन्नालाल, मतादीन, ठाकुर सिंह, बली दुबे, लल्लासिंह, बुद्धू सिंह, परमानन्द, शोभाराम, गाजी खान, अब्दुल हयात, मल्लू, दुर्गा प्रसाद, नजर मोहम्मद, देवीदान, जय गोविन्द।
कैप्टन स्मिथ के बयान से पता चलता है कि हनुमान सिंह ने छावनी में विद्रोह के दो दिन बाद ही 20 जनवरी, 1858 की रात डिप्टी कमिश्नर के बंगले पर भी हमला करने की कोशिश की थी। उस समय बंगले में क्षेत्र के कई प्रमुख वरिष्ठ अधिकारी सो रहे थे। इन अधिकारियों की सुरक्षा के लिए नियुक्त स्मिथ के ठीक समय पर जाग जाने से हनुमान सिंह को यहाँ से भागना पढ़ा| अंग्रेज सरकार ने उनकी गिरफ्तारी के लिए 500 रुपए के नगद पुरस्कार की घोषणा की थी, पर गिरफ्तार नहीं किया जा सका। हनुमान सिंह के फरार होने की इस घटना के बाद उनका कोई विवरण प्राप्त नहीं होता। कंप्टन स्मिथ के अनुसार जिस प्रकार हनुमान सिंह ने डिप्टी कमिश्नर के बंगले पर साहसपूर्ण आक्रमण किया, यदि उसे अपने उद्देश्य में सफलता मिल जाती तो निश्चय ही अंग्रेजी हुकूमत के अधिकारियों का इस शहर से सफाया हो जाता।
रायपुर का पुलिस परेड ग्राउंड थी अंग्रेजी सेना की छावनी
छत्तीसगढ़ की राजधानी मे स्थित ऐतिहासिक पुलिस परेड मैदान आजादी की लड़ाई के लिए विख्यात है। इसी मैदान में छत्तीसगढ़ में प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 की लड़ाई लड़ी गई। इतिहासकार डा. रमेंद्रनाथ मिश्र ने बताया कि छत्तीसगढ़ में अंग्रेज 1854 में पहुंचे। पुलिस परेड ग्राउंड को अंग्रेजी सेना की छावनी बनाया गया था। सैकड़ों अंग्रेजी सेना घुड़सवार, गनमैन समेत अन्य सैनिकों के दल रहा करते थे। तब छत्तीसगढ़ के क्रांतिकारियों ने 1857 में अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ बिंगुल फूंक दिया। इसी मैदान में 18 जनवरी 1858 को हनुमान सिंह अपने 17 साथियों के साथ अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए प्लानिंग तैयार की। जैसे ही अंग्रेज अधिकारियों को देखते ही खूनी हुंकार भरी।
बताया जाता है कि इस बीच छत्तीसगढ़ के क्रांतिकारी और अंग्रेज के बीच छह घंटे की लड़ाई लड़ी। अत: अंग्रेजों की संख्या अधिक होने के कारण एक-एक कर 17 लोगों को गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया। रायपुर की जनता और सैनिकों की उपस्थिति में 22 जनवरी 1858 को सुबह जेल के सामने खुलेआम 17 लोगों को फांसी में लटका दिया।